मंगलवार, 18 सितंबर 2007

पहिल डेग : उपेन्द्र दोषी


आ तीनू गोटे बड़ी काल धरि चलैत रहल। चुपचाप। नि:शब्द। आगू-आगू मङर मने सुक्कल मङर, बीच में चिना माय, सुक्क्लल मङरक घरनी आ तकरा पाछू कल्लर ठाकुर – गामक अधलाह काज में बाँहि पुरनिहार।
पीच रोडक दुबगली घर सभ रेखैत कल्लर चौंकल –आरे तोरी के! मङर, थुम्हा आबि गेलै हो।
मङर हँ हूँ किछु नहिं बाजल। बस, खाली डेग दैत बढैत रहल। निसाभाग राति में अनठिया लोक आ लोकक बोली सुनैत दोकानक आगू में ओङहाइत मोर पाँचेक कुकूर दौड़लै झाँऊ-झाऊँ करैत्। चिनिया माय डरे सहमि गेलि आ मङरक लग चलि आएल। ओकरा कुकूर आ चोर दुनूक बड डर होइत छैक्। लगै जेना ओ जोर स चिचिआय लागति। ओकरा थरभस लागि गैलै आ मङरक लग ठाढि जकाँ भ गेलि। ओकर जाँघ जेना लोथ भ गेलैक आ पायर बान्हल सन बूझना गैलैक। पाछू-पाछू चलैत कल्लर ताबत लग आबि गैलैक –“चलू ने मङराइन चलू! कुकूर तँ एहिना भूकत! हाथी चलय बजार कुकूर भूकय हजार! चलू!”
मुदा पसेना स तीतलि चिनिया-माय की बाजौ? ओकर कंठ जेना फुजबे ने करैक। ताबत किछु आर कुकूर संग भ क तीनू गोटेक आगू पाछू भूक लगलै। कुकूर सभ भूकैत-भूकैत जखन आसमान माथपर उठाब चाहलकै त मङर अपन ठेंङा रोड पर पटकैत – फट-फट क कुकूर के डाँट लगलै, मुदा कथी लै कुकूर सभ गुदानतैक। तहन कल्लर उसाहलक अपन ठेंङा आ झटहा जका फेक क चाहलक कि कुकूउर नांङरि सुटका भागल दोकान दिस। थोड़ेक फरा कजाक फेर भूक लागल। चिनिया-माय के जेना जान में जान अयलै। ओ फक द निसास छोड़लक। खा पोसनिहार सब के! चिनिया माय डेराइते बाजलि।
-- चुप रह चल चुपचाप। मङर धोपि देलकै।
-- मौगि कथु जाति, अपन सोभाव नहि बिसरति। मङरक स्वर में सह दैत कल्लर समर्थन कयलकै।
-- सैह न कह्। कहलकै जे चालि, प्रकृति, बेमाय, तीनू संगहि जाय। त अनेरे तखनी स घाठि फेनने छै। चिनिया माय खौंझाइत कहलकै।
-- रौ बहिं…हमरे धोपै-ए! कल्लर? सुनहक! कहलकै जे अहीर बुझाबय से मर्द। गै, अखनी जे तू गारि पड़लीही से जँ सुनितौ रहे, आ आबि क चारि सटका पोनपर ध दितौ त केहन लगितौक।“मङर फेर चिनिया माय के रेवाड़लक।
--छोड़ि दहक मङर, तोंहि चुप भ जाह। कथी लै लगैत छह मौगी स। मौगी होइ-ए धीपल खापड़ि। एक मुट्ठी बातक तीसी जहाँ पड़ल की लागल चनचनाय।“ कल्लर स्थितिके सम्हारैत बाजल।
--मर, हम त कुकूर के कहलिएक। लोक के कहलिएक थोड़े! कहलकैक जे –घेघ छल तोरा, उछटे गेल मोरा – चिनिया माय साँचे चनचना उठल।
-- खैनी खेबहक मङर? – गप्प आ स्थिति के दोसर दिस मोड़ैत कल्लर पुछलकै।
--ओह बहिं। कुकूरो सभ किछु आँखि देखलक-ए! देख ने कोना हवाइ लुटने अछि। मङर कुकूर दिस फेर ठेङा उसाहलक।
कुकूरक अनवरत भूकब सूनि एकटा दोकानदार बल स उकासी आ खखास कैलक। सड़कक दोसर कातक दोकानदार टार्चक रोशनी एहि तीनू गोटेपर फेकलक आ पुन: सूति रहबाक उपक्रक कर लागल। पानवाला झाजीक निन्न सेहो टूटि गेलैक।
--की छिऐ हौ सुमरित? कुकूर बड़ लगै छै? झाजी ओंङ्घायल स्वर में पुछलकै।
--नै कुच्छो! बटोही बाबा। सुमरित बातके अनठबैत कहलकै।
--एते रातिक बटोही? झाजी फेर टोकारा देलकै। खौंझा गेल सुमरित्। इह! इहो बुढबा जे है। सुतत से नै, त कथी है करै-ए। मुदा झाजी के मुँह पर की कहौ? तह दैत बाजल – हौतै कोई, साथमें एकटा जनानियो हई।
--आँय! जनानियो है? – झाजी जेना के जेना धरती पर स्वर्ग भेटि गेलनि। जरूर ई उढरा-उढरी होयत। जरूर ककरो ल क पड़ायल होयत। झाजी फनिक क गुमटी सँ आबि गेल। कुकूर सभक आ झाजीक कोरस सूनि लगभग पूरा थुम्हा बजार जागि गेलै। बजारे कोन? गोट तीसेक घर कुल मिला क। पीच रोडक दुबगली। धिया-पूताक धरिया जका पसरल।
से झाजी सङ झटकल चारि गोटे आर। दौड़ल तीनू के रोकय लेल। कल्लर पाछू तकलक आ सहमि क ढाढ भ गेल।
--कहाँ रहै छ? ढाढ रह – झाजी डपटि क बाजल। चिनिया माय आसन्न भय स प्रकम्पित भेलि मोने-मोन गोहारि कर लागल -- जय हो खेदन बाबा, जय कारू बाबा!
--कहाँ रहै छह? – चाहबला छौड़ा बाजल।
-- रामनगर। -- कल्लर बाजल।
-- कोन रामनगर? – झाजी डपटैत पुछलकै।
-- हरदी-रामनगर। मङर पाछू घुनैत उत्तर देलकै।
-- जेब कहाँ? – सुमरित चिनिया माय के मुँह पर टार्च बारि क रोशनी फेकैत पुछलकै।
-- सुपौल जयबै बाबू। -- कल्लर मिरमिराइत बाजल।
सुमरित आ झाजी चिनिया माय के देखलक आ सोचऽ लागल। गोर अदक देह। छाती आ बाँहि गोदना सँ छाड़ल। नाक में करीब एक भरिऽक लोलक निचला ठोर पर लटकैत। करीब चालीसक वयस, मुदा शरीर कटगर। झाजी जखन-जखन एहन लोक के दैखैत अछि – लोलऽक लेल सोचऽ लगैत अछि। सैह, ई मौगी खाइत होयत तँ लोलक मुँहमें नहिं चल जाइत होयतैक? थूक फैकैत होयत तँ लोलक पर सभाटा लटकि जाइत होयतैक? मुदा झाजी एखन किछु नहिं सोचलक। बाजल – सो सभ कुछ नहीं होगा। हम निगरानी समिति का सेकरेटरी है। रात भर तुम लोग हियाँ रुक जाव। भोर में जहाँ जाना है चला जाव। एतना रात को जाने नहीं देगा। रात को औरत लेके चलेगा? की हौ छब्बू?
--हँ मालिक! – चाहबला छौंड़ा हुँकारी भरलकै।
-- से की हम कोनो अनकर मौगी लऽ कऽ जाई छियै? अपन घरनी के लऽ कऽ जाइ छी।
-- चोप! तामस चढाता है, घरनी का भरुआ। एतना रात को चलेगा? झाजी फेर दबारलक।
मुदा बाह रे कल्लर! दिमाग में जेना प्रश्नऽक सही उत्तरि भेट गैलै। ओ कने एकांत भऽ गेल। आ एक दू गोटे के अपना दिस बहटारि लेलक। बाजल – असल में मङराइन के केन्सर के बीमारी भेल छै। ब्लाकऽक डाकटर कहलकै जे पटना में जल्दी देखा ले। सम्भव आगूओ जाय पड़त। तेँ बाबू भोरका गाड़ी पकड़ऽ लेल धड़फड़ायल छिए। नहिं त रामनगर आ सुपौल कोन दूर? दू-अढाई घंटाक रास्ता।
-- केन्सर? – सभ फुसफुसायल अपना में। सुमरित पहिने हनछिन-हनछिन करैत रहय। भारी बीमारीक नाम सुनि छौंड़ो सभ पाछू हटऽ लागल। तखन झाजी बेचारे की करत? – अच्छा रमनगर के गंगाधर झा के चिन्हैत छहका?
-- ओ तऽ हम पड़ोसिये छथि! – कल्लर बाजल।
-- आ राजीन्दर बाबू के?
-- ओ हम्मर पड़ोसी – मङर बाजल। हबैन तक हम हुनके हऽर जोतैत छलियैन।
बड़ बेस, जाह। मुदा देखऽ रातिकऽ चलै छह, नीक नहिं करै छह। -- झाजी हारल जुआरी जकाँ बाजल।
-- की करबै मालिक! कोनो की सऽखसँ रातिकऽ चलै छी? जाउ आहाँ सुतू गऽ। परनाम! कल्लर पिण्ड छोड़बैत बाजल।
-- अच्छा, सुनऽ, गाँजा-बाजा तऽ ने छऽ संग में? – फेर झाजी पुछ्लकैक।
-- नहिं मालिक, जाउ निचैन भेल।
झाजी अपन गुमटी में फिरि आयल आ अंङैठी-मोड़ देबऽ लागल। हाँफी। हाँफी पर हाँफी।
कुकूरो सभ अपना सीमान सऽ टपल बूझि चुप भऽ गेल। थुम्हा बजारा से इहो तीनू टपि गेल। आब कारी स्याह पीच रोड आ रोडक दुबगली बबूरक बोन। रातुक अन्हार में कारी सड़क आर कारी लागऽ लगलैक। भारि अकास जनेरक माबा जकाँ तरेगन छिड़िआयल रहैक आ भिखमंगाक फाटल कंबल सन सहस्त्राक्ष लगैक।
बबूरोबोनि जखन टपि गेल तऽ तीनू कने आफियत अनुभव कयलक्। भीड़ स बेदाग निकलि कऽ चलि आयल तकर प्रसन्नता सबऽ सऽ बेसी कल्लर के छलैक। कारण स्थितिक गंभीरताके वैह बुझने रहैक। मङर- मङराइनक हेतु धन-सन। जेना अदना सन गप्प भेल होइक। कल्लर प्रसन्नता सँ उठौलक पराती – तीन देखहुँ जात, सखि हे तीन देखहुँ जात! कमल नयन, विशाल मूरति, सुन्दरी एक साथ! सखि हे! इह! बरगाही भाइ, ठकुरबो जे है, अतत्तह करैए। अरे दुपहरिया राति में पराती गबै-ए चलऽ की चुपचापे! – मङर अकछाइत बाजल।
-- आब की राति धयले छै? भोर त भऽ गेलै। -- कल्लर बाजल।
-- “रौ बहिं, डंडी-तराजू माथ सऽ कनिये हठ भेलै आ भोर भऽ गेलै? कम सऽ कम एखन एक पहर राति आर छै। देखहक—“ मङर कल्लर के बहटारलक आ आकास में उगल त्रिशंकु दिस इशारा करऽ लगलैक।
-- अच्छा छोड़ऽ -- कल्लर अनठबैत कहलकै।
-- ‘तखन तेजू मिसर की सभ केलक मङराइन?”
-- मङराइन जे मानसिक रुपे गाम आ बथान में ओझड़ायल छलि, साकांक्ष होइत बाजलि – ओना परोछक बात छै, लेकिन हमरा तेजू मालिक किछु नै कहलक। हमर हाथो नै धयलक। बाटे धयने आयल, बाटे धयने गेल।“
-- सुनलहक मङर? भऽ गेलऽ! लड़ि लेलऽ मोकदमा? हम तऽ पहिने कहलियऽ, मौगीक विसबास नहिं।“ – कल्लर स्पष्ट कऽ देलकै।
मङर अपन फराठी सम्हारैत लागल रेड़ऽ -- गय मौगी, तेजुआ…! गय, हाकीम पुछतौ तऽ इहे कहबही। गाम आ सुपौल सभ घिनाओत ई मौगी। देखि ले डांङ। ठीक-ठीक जे कल्लर सिखौलकौ, हाकिम लग कहऽ पड़तौक। ने तऽ देखि ले। एही डाङ सऽ डेंङा देबौ। सुक्कल मङर के तों एखन चिन्हले कहाँ? – मङर हकमि जकाँ गेल।
-- कुच्छो करऽ, हमरा लाज होइ-ए। ई बात हमरा हाकिम लग कहल पार नहिं लागत्। हम गामे सऽ कहैत अबै छियऽ। मारि देबऽ तऽ मारि दऽ। चढा दऽ चाँपे। मुदा हमरा बुते ककरो आगि उठाओल पार नहिं लागत। बेचारा हमर किछु बिगाड़बो नै केलक तऽ हम अनेरे कथी लेल दोख दियौक। झूठ बाजि कऽ की?” – चिनिया माय घनघनाइत कहलकै।
-- गय, सोनाक टुकड़ी खेत कबुआ लेलक। मालक बथान लेल मोंछ पिजबै-ए आ तों कहै छे हमर कुच्छो नै बिगाड़लक? दही न अथी कराकऽ ओकर रुप्पैया, जे करजा सधाकऽ खेत छोड़ायब।“—मङर चिनिया माय के गरिअबैत बाजल।
-- “दौक ने देह बेचिकऽ टाका जहाँ सँ होई छै तहाँ से। करजा खेलकै ई, एकर बाप, आ देबै हम?” – चिनिया माय बिक्ख होइत लोहछैत बाजल।
-- “गय, तों हमरा बापके कहबे?” फटाक- फटाक। -- आ मङर बैसा देलकै दू डाङ चिनिया माय के पोन पर।
-- “मङर, हम पहिने कहलियऽ। एकरा बूते नहि होएतऽ। ई तऽ तेजुएक राज़ी छऽ। ओकर सिकैत बजतऽ? ई तऽ गोटे दिन तोरे माहुर खोआ देतऽ।“ – कल्लर ललकारा देलकै।
-- “रै कोढिया! पुतखौका ! तोरे घरनी सन सभ छै? तोरे घरनी जेना जुगल सिंह सङे फँसल छौ, तहिना बुझै छिही। बड़ पूर बनऽ चलला-हे। हम जेना जनिते नहि छियनि?” – चिनिया माय कसिकऽ कल्लर ठाकुर पर प्रहार कयलकै।
कल्लर ठाकुर एहन प्रहारक कल्पनो नहिं कयने छल। तिलमिला गेल। “तखन लिहऽ खेतक साँती बाप बलाऽ…।“ – कल्लरो ताव में आबिकऽ बाजल। “मङर एहिसँ नीक तँ चिनिया। तोहर बातो मानैत छह। फट फट जबाबो दितैक हाकिम के। इह। पौ बारह!”
-- रौ कलरा, किछु भऽ जाउ, हम अपना बेटी के बजार नहिं चढायब। एखन ओकर गौना करबाक अछि। ओकरा हाकिम लग ठाढ करबै तऽ हम रहब कहीं के? गौना होयतैक? कुटुम की कहत? नहिं ई नहिं होएत। ओ तऽ पाहुन थिक। हमर लोक थिक थोड़े? ई जे हमर लोक अछि तकर ई हालति …।“ --- कहैत कहैत मङर पित्ते लह-लह करऽ लागल।
बेटीक मादे सुनैत देरी चिनिया माय जेना उग्र भऽ गेलि। ओकर सौंसे देह काँटो-काँट भऽ गेलैक। उनटि कऽ ओ कोन फुर्ती सऽ कल्लरक पेट हबकि लेलकै से कल्लरो के पता नहिं चललैक। कल्लर बफारि तोड़ऽ कानऽ लागल। आ, पेट में दाँत गड़ौने चिनिया माय संज्ञा शून्य भऽ गेलि। बड़ी का पर होश भेलै तऽ तर में कलराक ऊपर सऽ स्वयं के पड़ल देखि हड़बड़ा गेलि चिनिया माय। उठलि आ लागलि बड़बड़ाय – हम अनकापर पाथर नहिं फेकबै, नहिं फेकबै। किन्नहु नहिं, किन्नहुं नहिं। बताहि भऽ गेलि चिनिया माय। मङर बामा हाथे फराठी आ दहिना हाथे माथ पकड़ि बैसि गेल। खन कल्लर के देखय, खन चिनिया माय के। डंडी तराजू पछिमा अकास में लटकि गेल रहैक। त्रिशंकुक निचला तारा जका मङर लटकि गेल रहय। की करौ? की करौ ओ?





कथाकार : उपेन्द्र दोषी

1 टिप्पणी:

जयप्रकाश मानस ने कहा…

आपकी पत्रिका देखा । मजा आ गया । लोकभाषाओं के संवर्धन की दिशा में यह नेक काम है । क्या इसका हिंदी अनुवाद आप भेज सकते हैं । हम इसे www.srijangatha.com पर छापना चाहेंगे । आप हिंदीगाथा के बारे में जो चाह रहे हैं हम उसी दिशा में कुछ कर रहे हैं ।
सादर